Wednesday, December 30, 2020

उषा तथा कविता के बहाने (काव्य सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर) कक्षा-12 वीं ह...काव्य



उषा (शमशेर बहादुर सिंह)

प्रातः नभ था बहुत नीला शंख जैसे

भोर का नभ

राख से लीपा चौका

(अभी गीला पडा है)

बहुत काली सिल जरा से लाल केसर

से कि जैसे धुल गई हो

स्लेट पर या लाल खडिया चाक

मल दी हो किसी ने

नील जल में या किसी की

गौर झिलमिल देह

जैसे हिल रही हो।

और.......

जादू टूटता है इस उषा का अब

सूर्योदय हो रहा है ।

 

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न :-

प्र. उषा कविता में सूर्योदय के किस रूप को चित्रित किया गया है ?

उत्तर : कवि ने प्रातःकालीन परिवर्तनशील सौंदर्य का दृश्य बिम्ब मानवीय क्रियाकलापों के माध्यम से व्यक्त

किया गया है ।

प्र. भोर के नभ और राख सी लीपे गए चौके में क्या समानता है ?

उत्तर : भोर के नभ और राख से लीपे हुए चौके में यह समानता है कि दोनों ही गहरे सलेटी रंग के हैं, पवित्र हैं।

नमी से युक्त हैं ।

प्र. स्लेट पर लाल........पंक्ति का अर्थ बताएँ ।

उत्तर : भोर का नभ लालिमा से युक्त स्याही लिए हुए होता है । अतः लाल खडिया चाक से मली हुई स्लेट के

समान प्रतीत होती हैं ।

प्र. उषा का जादू किसे कहा गया है ?

उत्तर: विविध रूप रंग बदलती सुबह व्यक्ति पर जादुई प्रभाव डालते हुए उसे मंत्र मुग्ध कर देती है ।

नील जल में या किसी की

गौर झिलमिल देह

जैसे हिल रही हो।

और …….

जादू टूटता हैं इस उषा का अब

सूर्योदय हो रहा हैं। प्रश्न

(क) गोरी देह के झिलमिलाने की समानता किससे की गई हैं?

(ख) उषा का जादू कैसा है?

(ग) उषा का जादू टूटने का तात्पर्य बताइए।

(घ) उषा का जादू कब टूटता हैं?

उत्तर-

(क) गोरी देह के झिलमिलाने की समानता सुबह के सूर्य से की गई है। सुबह वातावरण में नमी तथा स्वच्छता

होने के कारण सूर्य चमकता प्रतीत होता है।

(ख) उषा का जादू अद्भुत है। सुबह का सूर्य ऐसा लगता है मानो नीले जल में गोरी युवती का प्रतिबिंब

झिलमिला रहा हो। यह जादू जैसा लगता है।

(ग) उषाकाल में प्राकृतिक सौंदर्य अति शीघ्रता से बदलता रहता है। सूर्य के आकाश में चढ़ते ही उषा का सौंदर्य

समाप्त हो जाता है। ऐसा लगता है कि उषा का जादू समाप्त हो गया है।

(घ) सूर्य के उदय होते ही उषा का जादू टूट जाता है। सूर्य की किरणों से आकाश में छाई लालिमा समाप्त हो

जाती है।

काव्य-सौंदर्य बोध संबंधी प्रश्न

 

निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे

भोर का नभ

राख से लीपा हुआ चौका

(अभी गीला पड़ा है )

बहुत काली सिल जरा से लाल केसर से

कि जैसे धुल गई हो

स्लेट पर या लाल खड़िया चाक

मल दी हो किसी ने

नील जल मै या किसी की

गौर श्लिलमिल देह

जैसे हिल रही हो।

और…..

जादू टूटता हैं इस उषा का अब

सूर्योदय हो रहा हैं।

प्रश्न 1: (क) काव्यांश में प्रयुक्त उपमानों का उल्लेख कीजिए।

        (ख) कविता की भाषागत दो विशेषताओं की चर्चा कीजिए।

अथवा

किन उपमानों से पता चलता है कि गाँव की सुबह का वर्णन हैं?

(ग) भाव–संदर्य स्पष्ट कीजिए—

नील जल में या किसी की

गौर झिलमिल देह

जैसे हिल रही हो।

उत्तर- (क) काव्यांश में निम्नलिखित उपमान प्रयुक्त किए गए हैं-

(i) नीला शंख (सुबह के आकाश के लिए)।

(ii) राख से लीपा हुआ चौका (भोर के नभ के लिए)।

(iii) काली सिल (अँधेरे से युक्त आसमान के लिए)।

(iv) स्लेट पर लाल खड़िया चाक (भोर से नमीयुक्त वातावरण में उगते सूरज की लाली के लिए)।

(v) नीले जल में झिलमिलाती गोरी देह (नीले आकाश में आते सूरज के लिए)।

उत्तर- (ख) (i) कवि ने नए उपमानों का प्रयोग किया है।

          (ii) ग्रामीण परिवेश का सहज शब्दों में चित्रण।

अथवा

निम्नलिखित उपमानों से पता चलता है कि यह गाँव की सुबह का वर्णन है-

(i) राख से लीपा हुआ चौका

(ii) बहुत काली सिल पर किसी ने लाल केसर मल दिया हो।

(ग) कवि कहना चाहता है कि सुबह सूर्योदय से पहले नीले आकाश में नमी होती है। स्वच्छ वातावरण के कारण

सूर्य अत्यंत सुंदर दिखाई देता है। ऐसा लगता है जैसे नीले जल में गोरी युवती की सुंदर देह झिलमिला रही है।

प्रश्न 2: (क) कोष्ठक के प्रयोग से कविता में क्या विशेषता आ गई है? समझाइए।

        (ख) काव्यांश में आए किन्हीं दो अलकारों का नामोल्लेख करते हुए उनसे उत्पन्न सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।

        (ग) उपयुक्त कविता में आए किस दृश्य बिंब से आप सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं और क्यों?

उत्तर- (क) कवि ने कोष्ठक का प्रयोग किया है। कोष्ठक अतिरिक्त जानकारी प्रदान करते हैं; जैसे कविता में कोष्ठक में दी गई जानकारी (अभी गीला पड़ा है) से आसमान की नमी व ताजगी की जानकारी मिलती है।

     (ख) काव्यांश में ‘शंख जैसे’ में उपमा तथा ‘बहुत काली सिल’ धुल गई हो।’ में उत्प्रेक्षा अलंकार है। इनसे आकाश की पवित्रता व प्रात: के समय का मटियालापन प्रकट होता है।

    (ग) इस काव्यांश में हम नीले जल में गोरी देह के झिलमिलाने के बिंब से अधिक प्रभावित हुए। सुबह नीला आकाशस्वच्छ होता है। नमी के कारण दृश्य हिलते प्रतीत होते हैं। श्वेत सूर्य का बिंब आकाश में सुंदर प्रतीत होता है।